हिमाचल के
प्रसिद्ध मेले एवं त्यौहार
हिमाचली लोग जश्न के किसी भी अवसर का भरपूर
स्वागत करते हैं। पूरे प्रदेश भर में विभिन्न स्तर पर अनगिनत मेलों एवं त्यौहारों
का आयोजन किया जाता है। लगभग हरेक गांव या क्षेत्र में मेले का आयोजन होता है।
गांव के समूहों के लिए भी मेले लगते हैं और फिर पूरे क्षेत्र या पूरे जिले के लिए
और भी बड़े स्तर पर मेले लगते हैं। हिमाचल में आयोजित होने वाले अधिकांश मेले
धार्मिक होते हैं लेकिन यहाँ पर सामुदायिक और व्यापारिक मेले भी लगते हैं। वास्तव
में हर प्रकार का मेला मूलतः सामाजिक या व्यापारिक मिलन के लिए एक अवसर बन जाता है।
स्थानीय देवता की उपासना के अलावा कुछ स्थानों में आज के इस आधुनिक युग में भी जोड़े
बनाए और विवाह तय किए जाते हैं। कारीगरों और किसानों की वस्तुएं बिकती हैं स्त्री-पुरूष
अपने सबसे सुंदर वस्त्र पहनकर रंगारंग कार्यक्रम, कुश्ती के मुकाबले देखते हैं।
मिंजर
हिमाचल
के चंबा में मिंजर मेले की परंपरा 17वीं शताब्दी में शुरू हुई थी। आज मिंजर मेले ने विश्व में अपनी
अनूठी पहचान बना ली है। मिंजर चंबा का मौसमी मेला है, चंबा के समृद्ध
इतिहास में इसे वर्षा के होने और मक्के की बालियां निकलने के उपलक्ष्य में मनाया
जाता है। आमतौर पर जुलाई-अगस्त में आयोजित यह मेला सुसज्जित घोड़ों और झंडों के
परंपरागत जुलूस के साथ आरंभ होता है। चंबा के सभी भागों से बल्कि हिमाचल के दूसरे
क्षेत्रों से भी लोग लंबी-लंबी दूरियां तय करके सप्ताह भर का यह मेला देखने के लिए
आते हैं। गद्दियों के प्रसिद्ध लोकनृत्यों के अलावा गाना बजाना और भारी मात्रा में
व्यापार भी होता है। मेले के अंतिम दिन भक्तगण रावी नदी के किनारे वरुण देवता को
मिंजर यानी मक्के की बालियां और नारियल अर्पित करते हैं।
कांगड़ा जिले में नवरात्रि के दौरान हर
वर्ष में दो बार आयोजित होने वाला बृजेश्वरी मेला एक धार्मिक मेला है। स्थानीय
जनता के अलावा माता के हजारों भक्त चलकर इस में भाग लेने के लिए आते हैं। अनेक लोग
यहां पर अपने बच्चों के मुंडन संस्कार भी करवाते हैं। देवी का पुराना मंदिर सन 1905
के
भूचाल में नष्ट हो गया था। उसकी जगह एक नया मंदिर बनाया गया था।
जवालामुखी मेला भी नवरात्रि के दौरान वर्ष
में दो बार आयोजित किया जाता है। ज्वाला कुंड में पवित्र अग्नि निरंतर जलती रहती है और भक्तगण
उसकी परिक्रमा करते हुए उसे अपनी भेंट चढ़ाते हैं। यहाँ दर्शन करने वाले भक्तों की
संख्या लाखों में होती है। राजा संसार चंद और महाराजा रणजीत सिंह के काल में इस
प्राचीन मंदिर का पुनरुद्धार कराया गया था।
सुजानपुर का
होली मेला
कटोच राजाओं की कर्मभूमि सुजानपुर ब्यास नदी के किनारे बसा हुआ एक सुरम्य
उपनगर है। नैसर्गिक सौन्दर्य से भरे छोटे-बड़े गांव इसे भव्यता प्रदान करते हैं। मुरली
मनोहर मंदिर भगवान श्री कृष्ण को तथा नागेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, इन
मन्दिरों की दीवारों पर अंकित भित्ति चित्र उस समय की कलात्मकता को प्रदर्शित करते
हैं। सुजानपुर का होली मेला प्रदेश के अन्य स्थानों में
आयोजित किये जाने वाले होली के मेलों से भिन्न है। राज्य के सबसे लंबे चौड़े मैदान
में लगने वाले इस मेले के प्रमुख आकर्षणों में लोक नृत्य, गीत, नाटक, कुश्ती के
मुकाबले और खेलकूद शामिल हैं।
मंडी का शिवरात्रि
मेला
मंडी का 7 दिनों का
शिवरात्रि मेला अपनी तरह का अनूठा और रंगारंग वातावरण के लिए विश्वप्रसिद्ध है।
भक्तगण अनगिनत देवी देवताओं को पालकी में ले जाते हैं। शिवरात्रि के दिन वह नाचते
गाते हुए सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाए गए नगर में प्रवेश करते हैं। इस क्षेत्र के
प्रमुख देवता के मंदिर यानी राज माधव मंदिर में दर्शन करने के बाद वे भूतनाथ मंदिर
में भगवान शिव की आराधना करते हैं। इसी के साथ सप्ताह भर के उत्सव प्रारंभ होते
हैं, जो लोगों को छोटी काशी के नाम से विख्यात मंडी को नजदीक से जानने का भरपूर अवसर
प्रदान करते हैं। अंतिम दिन से पहले जागरण आयोजित किया जाता है जिसमें देवताओं के
गुरु आने वाले वर्ष की घटनाओं की भविष्यवाणी करते हैं।
हिमाचल में आयोजित विभिन्न त्योहारों के
मुकाबले में कुल्लू का दशहरा सबसे अधिक भीड़ आकर्षित करता है। कुल्लू का यह दशहरा ढालपुर
के मैदान में आयोजित किया जाता है जहाँ इसका शुभारंभ रथयात्रा से होता है। इन
उत्सवों के प्रमुख देवता रघुनाथ जी को लकड़ी से पूरी तरह सुसज्जित रथ में ले जाया
जाता है। यह यात्रा रावण पर विजय के लिए राम के अभियान की सूचक है। पूरे जिले से
लाए गए हजारों पहाड़ी देवता सात दिनों तक
चलने वाले इस आयोजन में हिस्सा लेते हैं। राज्य के सबसे रंगारंग और जोश भरे लोक
नृत्यों के अलावा अन्य मनोरंजन भी दर्शकों को रोमांचित करते हैं। हर शाम एक नया मेला,
एक नई सनसनी और एक नई गतिविधि लेकर आती है। आधुनिक नाटक, शास्त्रीय एवं सुगम संगीत,
लोकगीत, लोकगायकों और प्रमुख संगीत हस्तियों के कार्यक्रम भी अब इस परंपरागत सूची
में शामिल हो चुके हैं।
लवी राज्य का सबसे पुराना व्यापार मेला
है, इसे किन्नौर के प्रवेश द्वार रामपुर में नवंबर में आयोजित किया जाता है। मेले
के दौरान ऊन, ऊनी कपड़े, पट्टू, खेस या कंबल, पश्मीना, चिलगोजे, घोड़े व घोड़े के
बच्चे, खच्चरों और याकों का व्यापार होता है। पूरे देश के खरीदार मेले के कुछ दिन
पहले सतलुज के तट पर एक तंग वादी में स्थित रामपुर पहुंच जाते हैं यहां किन्नौर
तथा शिमला कुल्लू लाहौल और स्पीति जिलों के दूरदराज के क्षेत्रों की लोक कलाओं का गहन
परिचय प्राप्त किया जा सकता है। अपने संगठित आयोजन के लिए यह मेला दो सदियों से भी अधिक समय से
विख्यात है। अतीत में स्थानीय लोग ऊंचे पहाड़ों से गडरियों और चरवाहों के वापस आने
पर आग जलाया करते थे। यह प्रथा आज भी सुरक्षित है जहां दिन के समय सामान की जोरदार
सौदेबाजी देखी जा सकती है। रात के समय आग के इर्द-गिर्द लोक नृत्य और संगीत
भागीदारों और तमाशा देखने वाले लोगों को एक समान आनंद प्रदान करता है।
बिलासपुर में माता नैना देवी का मंदिर एक
पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, नवरात्रों के दौरान लाखों भक्त नैना देवी के प्रसिद्ध
मेले में भाग लेते हैं। कई श्रद्धालु जमीन पर लेट-लेट कर रास्ता नापते हुए मंदिर
तक की दूरी तय करते हैं।
रेणुका का मेला सिरमौर जिले में रेणुका
झील के किनारे आयोजित किया जाता है। एक दंतकथा है कि परशुराम की माता रेणुका ने
अपने पति ऋषि जमदग्नि के शाप के कारण एक झील का रूप धारण कर लिया था। उसके पास ही
परशुराम का मंदिर है। विभिन्न मंदिरों में शोभायमान मूर्तियां नवंबर में लगने वाले
इस मेले में लाई जाती है। हजारों लोग झील में पवित्र स्नान करते हैं। मेले के
दौरान पूरा क्षेत्र एक चित्त आकर्षक दृश्य प्रस्तुत करता है जहां भक्तिगीत और लोक
संगीत पूरे उत्सव के दौरान गूंजते रहते हैं।
ऊना जिले में दुर्गा पूजा के एक
प्रसिद्ध स्थल पर लगता है। हर मंगलवार को लगने वाले साप्ताहिक मेले के अलावा यहां
हर साल 3 बड़े मेले आयोजित किये जाते हैं। जिनमें दो नवरात्रों में और एक
श्रावण अष्टमी को लगता है।
हिमाचल को देवभूमि कहते हैं और इस
प्रदेश में उपरोक्त प्रमुख मेलों एवं उत्सवों के अलावा अनेकों छोटे बड़े मेले आयोजित
किये जाते हैं जिनमें बिलासपुर, सुंदरनगर, जोगिंदरनगर और अन्य स्थानों के लोकप्रिय
नलवाड़ पशु मेले शामिल हैं। अर्की, कुनिहार, मशोबरा और अन्य कई जगहों में आयोजित सायर
मेले भैंसों की लड़ाइयों के लिए विख्यात थे जो अब धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार
पर हैं।
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